​टूटे दिल की नुमाइश करूँ

या मुस्कुराते चेहरे पर पर्दा करूं

दर्द-ऐ-दिल का फलसफा इतना है बस

रक़्स भी इसमें, मौसिकी भी

खलिश है ऐसी की 

न मैख़ाने में  छिप सके 

न तलबगार को मिल सके ।।

©निधि

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